Thursday, 25 May 2017

रीठागाड़ी ज्यू! मुझे बैर-भगनौल कौन सुनाएगा अब..


आपसे एक ही तो मुलाकात हुई थी. दो-चार लोगों के कुमाऊंनी में कविता पाठ करने के बाद आपको मंच पर आमंत्रित किया गया. ‘मैं त कविता पाठ करनै लिजि ऐरछि, लेकिन या सबै लोगोंकि इच्छा छ कि मैं बैर-भगनौल सुणूं’. अपने ही ठेठ अंदाज में आपने ये पंक्तियां कही. बागेश्वर उत्तरायणी मेले का जिक्र आया. आपने बताया कि कितना लगाव था आपको बागेश्वर मेले से. पहले जब उत्तरायणी मेला होता तो बैरियों में जबर्दस्त प्रतिस्पर्धा छिड़ जाती. एक-दूसरे को अपनी वाकपटूता से हराना होता.


एक बार बामण और अनुसूचित जाति के दो दिग्गज बैरियों में मुकाबला छिड़ गया. बामण ने सपने से बात शुरू करी. दूसरे बैरी को छोटा दिखाने और जलील करने की मंशा से बोला- बेई रात मैंलि स्यूण देखो, मैं भैंस बणि रैछि और म्यार पेट बटिक तू है रोछिए. जवाब में दूसरा बैरी बोला- तुम ठीक कोन लागि रोछा सैपो, बेई रातै यसै स्यूण मैंनि लै देखो. तुम भैंस बड़ि रौछिया और मैं तुमार कचिनि पन चस्यूणा चस्यूण लागि र्रैछि (अर्थात मैं तुम्हारा दूध पी रहा था). और तुम म्यार पुछौड़ा मुणि पन चाटन लागि रौछिया.


दो बैरियों के बीच की ये बहस समझा देती है कि बैर किस तरह की विधा है. साल 2016 में हल्द्वानी के पर्वतीय सांस्कृतिक उत्थान मंच में चल रहे उत्तायणी मेले के दौरान कुमाऊंनी कवि सम्मेलन में आपको पहली बार सुनने और देखने का सौभाग्य मिला. आपकी बात को आगे बढ़ाता हूं। बात बागेश्वर उत्तरायणी में दो बैरियों के बीच की चल रही है. बामण बैरी कह रहा है- हमार पूर्वज ऋषि-मुनी लोग छी. ऋषि मुनी लोग ठुल ठुल चमत्कार कर दिछि. अगस्त मुनिलि एक आचपन में गंगा सुखै देछि. यानी अपनी बढ़ाई में बामण बैरी बहुत कुछ कहे जा रहा था. अब बारी दूसरे बैरी की थी. बोला- हुन्याल त्यार पूर्वज ऋषि मुनी, तुझै कि भैये ऋषि मुनी. रात में एक लोल्टी पाणि पेलै बामूणा, रात भरि मूतड़ै रौलै... लोक गायक चंदन सिंह रीठागाड़ी ने अपने ही खास अंदाज में इसे गाया था. यहां तक पहुंचते-पहुंचते मेरी रुचि बढ़ गई थी. मैंने मोबाइल निकाला और ऑडियो रिकॉडिंग शुरू कर दी.


रीठागाड़ी ज्यू ने बात आगे बढ़ाई. फिर एक किस्सा. एक स्याणि-बैग (पत्नी-पति) छी. बैग जि कौलै स्याणि वीक उल्ट करनेर भै. परेशान पति ने सोचा इससे पीछा कैसे छूटता है. बागेश्वर उत्तरायणी मेले चला था. पति ने कहा- ‘सुणछै भागि! आलिबेर ठंड बहुत हैरो, उत्तराणि न जाना’. पति ने सोचा जाते हैं कहता हूं तो ये मना कर देगी, इसलिए उल्टा बोलता हूं। खैर, जवाब में पत्नी बोलीं, ‘तुमनि न जाड़ छै त न जाओ, मैं त जौन’. पत्नी उत्तरायणी को चल दी, पीछे पीछे चुपके से पति भी बागेश्वर पहुंच गया. दोनों सरयू किनारे पहुंच गए. पति बोला- ‘सुणछै भागि, ठंड बहुत छ, गङ न नाना’. ‘हाई तुम न नानात जन नाया, मैंतै नाणै ऊपर या ऐरी, मैं जरूर नान’ पत्नी यह कहते हुए सरयू में उतर गई. पति फिर से बोला- ‘भागी! आलिबेर गंङ बहुत छ, बीच गंङ में जन जाए, किनारै में नाए’. पत्नी का जवाब था- ‘किनार में नाड़छ त तुम नाओ, मैं त बीच गंङ में नान’ कहकर पत्नी बीच नदी की तरफ बढ़ गई।

तभी नदी के तेज बहाव में पत्नी बहने लगी. आदमी ने सोचा आज इससे मुक्ति मिल गई. तभी महिला के हाथ एक पेड़ का हांग (शाखा) आ गया. पति ने सोचा यह और बच जाती है. एक और चाल चली. ‘भागी! हांग छाड़िये जन, मैं औनी’ पति के ये कहते ही पत्नी ने हाथ आई शाख छोड़ दी और नदी के तेज बहाव में बह गई. 
तब आदमी नदी में ऊपर की ओर चलने लगा. आगे एक व्यक्ति मिला तो पत्नी खो चुका आदमी बोला. ‘भाई मेरि स्याणि देखै कि कति, सरयू में बगि गै’. आदमी चौकते हुए बोला- ‘स्याणि सरयू में बगि गैछ त उनकैहि देखणि चैछि, ऊपकै काहि ढुनण लागि रैछा’ पति का बैर गाते हुए जवाब था- ‘ उल्टी स्याणि छी भाई, कि पत्तै उपकै बगी गैछि’


लोक गायक और बैर-भगनौल समेत तमाम विधाओं के पुरोधा चंदन सिंह रीठागाड़ी ने पहली मुलाकात में ही मुझे मुरीद बना दिया था. कार्यक्रम खत्म होने के बाद रीठागाड़ी जी से मिला और उनका फोन नंबर लिया. हालांकि फोन पर एक ही बार बात हो पाई। उनकी ये रिकॉडिंग हाल तक मेरे मोबाइल में थी. मैं इसे कई बार सुनता, घर जाने पर इजा को भी सुनाया करता. पिछले दिनों मोबाइल हैंग कर रहा था, कई चीजे हटा दी. अभी तो रीठागाड़ी जी से कई बार मिलना होगा. बहुत सारी बातें होंगी. बैर-भगनौल और न्योली-छपेली को समझने का मौका मिलेगा. फिर अच्छी रिकॉडिंग कर लूंगा, यही सोचकर मैंने रीठागाड़ी जी की एकलौती रिकॉडिंग को डिलिट कर दिया. 

पिछले दिनों चंदन सिंह रीठागाड़ी जी के मरने की खबर आई तो मैं हिल गया. उनसे एकमात्र मुलाकात याद आ गई और याद आ गई वो रिकॉडिंग भी. मोबाइल में खोजा तो रिकॉडिंग नहीं. फिर याद आया कि अभी पिछले दिनों ही तो मैंने मोबाइल साफ किया था. मुझे रोना आ गया. अब क्या बचा मेरे पास. न रीठागाड़ी रहे, न रिकॉडिंग. अपने मन को कैसे समझाऊं कि रीठागाड़ी जी से अब कभी मिलना नहीं हो पाएगा. अब कौन सुनाएगा मुझे बैर-भगनौल. काश मैंने वो रिकॉडिंग हटाई न होती. हालांकि अपने मित्र राजेंद्र ढैला से रीठागाड़ी जी की दो मोबाइल रिकॉडिंग मैंने व्हाट्सएप से मंगा ली हैं.

अलविदा रीठागाड़ी जी.. कुमाऊंनी लोक विधा की अद्भुत धरोहर जो आप छोड़ गए हैं, उसके लिए आप हमेशा याद किए जाते रहेंगे..

(श्रद्धांजलि स्वरूप)
25 मई, 2017



No comments:

Post a Comment