Monday, 22 May 2017

यात्रा वृतांत

मुनस्यारी: जहां हिमालय करता है आपकी अगुवानी

हिमालय को देखने, जीने और महसूस करने के लिए भला हिमालय जाने की जरूरत है? हम खुद हिमालय के वासी हैं. पहाड़, पेड़, जंगल, शीतल जल ये सब हमारे आसपास भी तो मौजूद है. दिसंबर से फरवरी के बीच हमें अपने आसपास ही बर्फ का दीदार हो जाता है. खूब मस्ती करते हैं. ठीक ऐसे जैसे छोटे बच्चे सावन की बरसात में उछलकूद करते दिखते हैं.

बेरीनाग से थल जाते हुए ये नजारे ध्यान खींच लेते हैं
मेरी ही तरह आम पहाड़ी के मन में भी गाहे-बगाहे ये सवाल उठते होंगे. लेकिन इस बार इन सभी सवालों को दरकिनार कर हम हिमालय दर्शन का मन बचा चुके थे. धौलादेवी जो अपने आप में किसी परिपूर्ण सौंदर्य से कम नहीं. देवदार के घने जंगल के बीच शाम के समय हम 18-20 युवा क्रिकेट खेल रहे थे. बात बात में कन्नू पूछ बैठा, भाई कितने दिन की छुट्टी है? दो-तीन दिन हूं. मेरा ये जवाब सुनकर एकाएक वो बोला- भाई कहीं घूमने का प्लान बनाएं? मेरी हामी के बाद चौकोड़ी और मुनस्यारी जाने पर सहमति बनी. तय हुआ कि दो बाइकों से चार लोग सुबह 8 बजे निकल पड़ेंगे.
सुबह सवा आठ बजे हम चारों घर के ऊपर खड़े थे. बाया बाड़ेछीना, सेराघाट निकलने का तय हुआ. बाइक में सेल्फ लेकर चारों निकल पड़े. धौलछीना तक का सफर कोई नया नहीं था. चीड़ के वृक्षों के बीच सकरी सड़क से सफर आगे बढ़ा. हुलार में उतरते हुए यही कोई 11 बजे हम सेराघाट पहुंचे. वाहन से किसी व्यक्ति को आता देख ढाबे वालों के चेहरे खिल जाते हैं. आओ मच्छी-भात, मच्छी-भात..। यह आवाज आभास कर देती है कि आप सरयू तट पर पहुंच गए हैं. यह वही जीवनदायनी सरयू है जो बागेश्वर से सेराघाट होते हुए घाट-पनार की तरफ बढ़ते हुए आगे निकल जाती है. मच्छी के शौकीन सरयू की मच्छी को खास बताते हैं. यही वजह है कि यहां मच्छी के दाम अन्य जगह से अधिक हैं.
सेराघाट की तपती दोपहरी में सरयू के तट पर ली गई तस्वीर
बाजार पार करते ही सरयू के दर्शन होते हैं. मई की तपती दोपहरी में सरयू के तट पर जाए बगैर रहा नहीं जा सकता. सरयू के पावन जल में डुबकी लगाते ही तन, मन शीतल हो जाता है. छोटे बच्चे आपको नदी में उलट-पुलट कर करतब दिखाते दिख ही जाएंगे. खैर, कुछ देर सुस्ताने के बाद हम आगे निकल पड़े हैं. गणाईगंगोली से राईआगर तक का सफर चीड़ के पेड़ों के बीच से होकर निकलता है. यहां से आप धीरे धीरे घाटी से ऊपर की ओर निकलने लगते हैं. दो घंटे का सफर तय करते हुए दोपहर 2.15 बजे बेरीनाग बाजार में पदार्पण होता है. बाजार देख आभास हो जाता है कि बेरीनाग ठीक-ठाक कस्बा है.
बेरीनाग से थल जाते समय सूर्योदय का नजारा
बेरीनाग में पुराने मित्र पत्रकार सुधीर राठौर से मिलना हुआ. बातचीत में हमने कहां कि मुनस्यारी के लिए जाना है, रास्ता बताने के साथ हमारा मार्गदर्शन भी करें. दोस्त ने नसीहत दी कि मुनस्यारी में आजकल दोपहर 2 बजे बाद रोज बारिश हो रही है. लिहाजा आज वहां जाना न तो संभव है और न उचित. क्योंकि मौसम का क्या ठिकाना. जाने कब रास्ते बंद हो जाएं, ऊपर से तुम लोग बाइक से हो. बोले- आज यही रहो, कल सुबह मुनस्यारी के लिए निकलना. खैर, मित्र की सलाह मानना हमारे लिए धर्म बन गया. चौकोड़ी घूमकर फिर यहीं लौटते हैं आपके पास, कहकर हमने मित्र से इजाजत ली. 8 किमी दूर स्थित चौकाड़ी पहुंचे भी न थे कि रिमझिम बारिश शुरू हो गई. लगा कि दोस्त की बात सौ आने सच हो गई. बांज-चीड़ के जंगलों के बीच बसे चौकोड़ी में निर्माणाधीन मकान के आंगन में शरण ली. तेज हवाओं के साथ दो घंटे तक जमकर बारिश हुई. बाद में पता चला कि इसी अंधड़ और बारिश से पूरा पिथौरागढ़ जिला अंधेरे में डूब गया है. बारिश के बीच आग जलाकर ठंड से बचाव किया. इसी बीच फिक्रमंद दोस्त का फोन आ गया कि अभी बारिश है. सुरक्षित ठिकाने में रहें अभी न निकलें.
पंचाचुली की चोटी दूर से ही आकर्षित करने लगती है 
बारिश थमने के बाद शाम 6 बजे हम लोग वापस बेड़ीनाग की तरफ लौटे. मित्र ने बेड़ीनाग बाजार के बीचोंबीच एक होटल में ठहरने की व्यवस्था की थी. बोले बारिश के बीच आप लोग कुछ देख तो नहीं पाए होगे. वैसे चौकोड़ी में अब देखने लायक कुछ खास बचा नहीं है. पुराना चाय बागान उजड़ गया है. अंधाधुंध निर्माण कार्यों ने चौकोड़ी की सुंदरता को निगल लिया है. पुराने नाम की वजह से लोग आज भी घूमने आ जाया करते हैं. दोस्त के इन शब्दों ने थोड़ी चिंता पैदा कर दी. वैसे यहां घूमने आने वालों के लिए बेरीनाग और चौकोड़ी में ठहरने की उचित व्यवस्था है. मुनस्यारी और हिमालय के दूसरे ग्लेशियर घूमने के इच्छुक लोग एक शाम बेड़ीनाग में पड़ाव डाल सकते हैं. खैर, बिजली नहीं होने से हमने यहां कैंडल नाइट डिनर किया. मोबाइल की बैटरी भी जवाब देने लगी थी. कल भी कुछ तस्वीरें कैद करनी हैं करके मोबाइलों को बंद किया और खुद भी सो गए.
टिमटिया से मुनस्यारी जाते हुए ऐसे कई नजारें दिख जाते हैं
सुबह आंख खुली तो बाहर का नजारा देख मन खुश हो गया. सुबह 6 बजे ही झोलाझंडी पकड़कर मुनस्यारी को रवाना हो गए. हिमालय की ओट से निकलते सूर्यदेव ने मनमोहक छठा बिखेर दी. कुछ फोटुए करने से खुद को रोक नहीं पाए. थल, नाचनी से होते हुए टिमटिया तक हम किसी घाटी में उतरते चले गए. यहां से आगे निकलने पर लगा कि हिमालय की असली यात्रा तो अब शुरू हुई है. क्‍वीटी, डोर होते हुए गिरगांव को जाते हुए लगता है कि मई में ही चौमास आ गया है. धरती हरी-भरी श्रृंगार किए हुए है. हरे-भरे पेड़, आसमान में तैरती बादलों की सफेद चादर ध्यान खींचते हैं. बिर्थी फाल दूर से ही आकर्षित करने लगता है. नजदीक पहुंचने पर आभास होता है कि बिर्थी फाल के क्या मायने हैं. बिर्थी फाल के पास मस्ती करने, शीतल जल में नहाने और फोटुए खिंचाने के लिए एक घंटे का समय कम लगता है. सकरी सड़क, ऊंची चट्टानों से होते हुए रातापानी और फिर कालामुनि तक का सफर तय होता है. यहां से हिमालय साक्षात खड़ा नजर आता है. इसी बीच एक खूबसूरत बाजार आती है. जगह-जगह लगे बोर्ड, बड़े रिजार्ट, देसी-विदेशी पर्यटक, खूबसूरत बुग्याल, हर तरफ हरियाली अहसास करा देती है कि आप मुनस्यारी पहुंच चुके हैं.
बिर्थी फोल : ऐसा लगता है मानो जन्नत में पहुंच गए हैं
मुनस्यारी आपको आनंदित कर देती है। जिस हिमालय को हम चित्रों या टेलीविजन में देखते आए हैं. वह साक्षात सामने खड़ा अद्भुत लग रहा है. मन करता है और आगे जाया जाए और हिमालय के साथ खूब मस्ती की जाए. जिसके पास समय अधिक है वह खलियाटॉप और उच्च हिमालयी बुग्यालों का आनंद ले सकते हैं. ट्रैकिंग के शौकीन मिलम ग्लेशियर जा सकते हैं. खैर, अब मौसम डराने लगा है. 2 बजे बाद बारिश का डर है. लिहाजा दिन का भोजन करने के बाद दोपहर 12 बजे हम मदकोट, बंगापानी, बरम होते हुए जौलजीबी को रवाना हो चुके हैं. कई जगह सड़कें टूटी हुई हैं. इसलिए वाहन चलाने में सावधानी जरूरी है. जौलजीबी से धारचूला और उससे आगे दारमा, व्यास और चौदास आदि वैली के लिए जाया जा सकता है. यह वे वैली हैं जहां के लोग जाड़ों में माइग्रेशन कर भाबर आ आते हैं. यहां के गांव छह महीने बर्फ से ढके रहते हैं. समय की कमी के चलते इस बार इन वैलियों में जाना नहीं हो पाया. 
क्वीटी से आगे ये चट्टान आपको डराने के साथ हौसला भी देते हैं
जौलजीबी से अस्कोट तक की सड़क काफी खुश कर देती है। कनालीछीना पहुंचने से पहले एक बार फिर हमारी परीक्षा शुरू होती है. कनालीछीना से 3 किमी पहले गुड़ौली में बारिश हमारी राह दो घंटे तक रोके रखती है. बारिश कम होने पर पांच बजे आगे को निकलते हैं. छिटपुट बारिश के बीच शाम 7 बजे पिथौरागढ़ पहुंचते हैं. यहां बिजली की पावर पाकर बंद पड़े मोबाइल खुलते हैं. तब घर वालों से खैरियत होती है. पिथौरागढ़ के चंडाक रोड से सुबह सबेरे का दृश्य मनमोहक होता है. यहां से गुरना, घाट, पनार, ध्याड़ी, दन्या होते हुए कई सारी यादों के साथ सुबह 10:15 बजे हम घर पहुंचते हैं.

कब आएं मुनस्यारी
वैसे तो मुनस्‍यारी का मौसम सालभर खुशनुमा रहता है लेकिन अप्रैल से मई और अक्तूबर से नवंबर भ्रमण के लिए उपयुक्त हैं। वसंत ऋतु में यहां की छटा देखने लायक होती है। जून, जुलाई में आने से बचना चाहिए, क्योंकि इन दो महीनों में यहां काफी बारिश होती है। जिससे कभी-कभी रास्‍ते बंद हो जाते हैं। नवंबर से फरवरी तक बर्फबारी का मजा ले सकते हैं।

1 comment:

  1. पढ़ के बहुत अच्छा लगा। बिर्थी वाटरफॉल घूमने के लिए बहुत अच्छी जगह है। प्रकृति प्रेमी के लिए मेरा यह लेख भी है बिर्थी वाटरफॉल

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