हर समाज की संस्कृति उसके लिए बेहद खास होती है। कुमाऊंनी संस्कृति में अलावा यहां जोहार की संस्कृति का भी अपना अलग अंदाज है। यहां के लोग विशेष तरह की पोशाक पहनने के लिए बिलकुल अलग तरह के आभूषणों को धारण करते हैं।
जोहार की पारंपरिक वेशभूषा में सजी महिलाएं |
आभूषणों का उपयोग हर समाज आदि काल से करता आया है। ज्यार-मुनस्यार (क्षेत्रीय बोली के शब्द) की बोली में आभूषण या जेवरात को 'हत-कान' कहा जाता है। शाब्दिक अर्थ के अनुसार इसका आशय हाथ व कान में पहने जाने वाले शोभायमान वस्तुओं से है। हालांकि इसका ये मतलब नहीं कि केवल हाथ-कान में ही जेवर पहने जाते थे। शौका समाज में उपयोग होने वाले आभूषण ही नहीं पुराने समय में दैनिक जीवन में प्रयोग होने वाली वस्तुएं, काष्ट-धातु से निर्मित रसोई के बर्तन आदि भी विशिष्ट हैं। खास बात ये है कि अतीत की याद दिलाती ये वस्तुएं बदलते समय के साथ शनै: शनै: लुप्त होती जा रही हैं। आज की पीढ़ी ऐसी वस्तुओं के नाम और उनके उपयोग से अंजान होते जा रही है। यद्यपि वर्तमान समय में इन वस्तुओं का न तो उपयोग होता है और न विशेष महत्व ही रह गया है। शौका समाज पर अध्ययन करने वाले स्व. डॉ. शेर सिंह पांगती अपनी किताब 'वास्तुकला के विविध आयाम' में लिखते हैं, अपनी लोक संस्कृति व सुनहरे अतीत को सहेजना और भावी पीढ़ी को उससे अवगत कराना व्यक्ति का दायित्व बनता है।
जोहार की पारंपरिक वेशभूषा |
ऐसे शुरू हुई जेवर धारण की परंपरा
आभूषणों की परंपरा शारीरिक शोभा बढ़ाने मात्र के लिए नहीं हुई। इतिहासकार डॉ. शेर सिंह पांगती के अनुसार आभूषणों का प्रारंभिक उपयोग मूल्यवान वस्तुओं जैसे सोना-चांदी के विभिन्न प्रकार के रत्नों को पारिवारिक आय की जमा पूंजी के रूप में सुरक्षित रखने के लिए शरीर में धारण करने से हुआ, ताकि इनके खो जाने अथवा चोरी हो जाने की संभावना न रहे। डॉ. पांगती लिखते हैं पौराणिक युग में बच्चे घरों को सुरक्षित रखने के लिए ताले उपलब्ध नहीं थे और न बैंक व लॉकर की व्यवस्था थी। अत: इसे शरीर पर धारण करके ही सुरक्षित रख पाना संभव था। परिवार की स्त्रियां घर से बाहर कम निकलती थी, इसलिए उनको उसका जिम्मा सौंपा गया। धीरे-धीरे अपनी संपत्ति व वैभव को समाज के समक्ष प्रदर्शन करने की परंपरा के चलते मूल्यवान धातुओं को सुंदर रूप देकर आभूषण के रूप में धारण करने का चलन हुआ।
सुरक्षा कवच संबंधी आभूषण
शौका समाज में जीवन में उपयोगी वस्तुओं को आभूषण रूप में धारण करने की अनिवार्यता थी। जोहार की महिलाएं कलाई में बड़े आकार की चांदी की चूड़ी धारण करती थी। डॉ. शेर सिंह पांगती अपने किताब में उल्लेख किया है कि आभूषण के आकार व मोटाई से पता चलता है कि इसका उपयोग सुरक्षा कवच के दृष्टिकोण से होता होगा। सामाजिक परंपरा में पुरुषों के घरों से दूर जाने की मजबूरी में नारियों को संभावित खतरों से संघर्ष करने के लिए कलाई में कवच पहनना अनिवार्य होता होगा। इसी तरह पांव में पैजामा (मोटे आकार की चांदी की पट्टी) और कम उम्र की लड़कियां पांव में चांदी का खोखला (गोलाकार छल्ला) पहनती हैं। पैजामा का मूल आकार पांव के कवच रूप में माना जाता है। कालांतर में आभूषण का स्वरूप देने के लिए आकार छोटा कर दिया गया।
ये भी हैं विशेष
जोहार की महिलाओं में स्यू-सांगल, अतरदान और चिम्ट-कनकुडि़ आदि तीन आभूषणों को (संयुक्त गुच्छे को छ्यामटांग कहा जाता है) चांदी की चेन या मोटे धागे से दाएं कंधे पर लटकाने की पंरपरा रही है। छ्यामटांग विलुप्त जोहारी-खुन (बोली) का शब्द है। छ्यामटांग के साथ रंग-बिरंगी कपड़ों के टुकड़ों को सुंदर आकार देकर छोटा बटुवा (पर्स) भी लटकाया जाता था। स्यू-सांगल के अंत में नर कस्तूरी के लंबे दांतों को चांदी के मूठ के माध्यम से जोड़कर उसके साथ सुअर के बालों का गुच्छा भी होता था, जिसे सुंर्याल कहते थे। इनका प्रयोग कदाचित नजर उतारने, तंत्र-मंत्र अथवा घरेलू उपचार में होता था। चिम्ट-कनकुडि़ में रोजमर्रा के तीन उपयोग, शरीर में चुभे कांटे को निकालने के लिए चिमटी, काम का मैल निकालने के लिए कनकुडि़ व दांत में फंसे भोजन के टुकड़े निकालने के लिए दांत खोंच (टूथ-पिक) का गुच्छा होता था। सवा इंच चौड़े चांदी के चेन के अंत में चांदी की छोटी डिबिया होती, जो अतरदान कहलाता। डॉ. पांगती लिखते हैं इत्र रखने का यह आभूषण अपभ्रंष में अतरदान कहलाया।
व्यापार से आयातित जेवर
नथ, चरेऊ, झुपिया, पचमुनिया, चंद्रहार, पौंची, धागुला, पुलिया आदि आभूषण आमतौर पर पूरे उत्तराखंड में पहने जाते हैं। लेकिन पैजामा, चूड़ी और छ्यामटांग की तीन लडिय़ां जोहार के विशिष्ट आभूषण रहे हैं। इनका ऐतिहासिक महत्व इंगित करता है कि जोहार की नारियां, पुरुषों की व्यावसायिक भ्रमण के कारण उनकी अनुपस्थिति में आतताइयों ने संघर्ष करने के लिए तत्पर रहती थीं। डॉ. पांगती ने लिखा है कि मल्ला जोहार में खेत की जुताई करते समय किसी अज्ञात पदार्थ से बने रंग-बिरंगे चुडिय़ों के टूकड़े उपलब्ध होते हैं। भ्रमणशील व्यवसाय के कारण इस सीमा के क्षेत्र के लोग मैदान या पड़ोसी देश तिब्बत से इनका आयात करते होंगे। चूडिय़ों की कलाकृति और चमकीले रंग को देखकर यह नहीं कहा जा सकता कि स्थानीय लोग इस कला को जानते होंगे।
..और जोहार के गीतों से मिली पहचान
जोहार की संस्कृति ही नहीं, प्राकृतिक और नैसर्गिक सौंदर्य भी अद्भुत है। खूबसूरत बुग्याल, हरी-भरी धरती, कल-कल बहती नदियां, सफेद चांदी-सा चमचाता हिमालय बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है। यही वजह रही कि यहां के सौंदर्य पर भी भरपूर लिखा गया। यहां तक कि जोहार-मुनस्यार पर गाए गीतों से कई लोक कलाकारों को पहचान दिलाने का काम किया।
लोक गायक पप्पू कार्की ने जोहार पर आधा दर्जन से अधिक गीत गाए हैं। 2011 में पलायन पर आया लोक गीत 'ऐ जा रे चैत-बैसाख मेरो मुनस्यार..' को लोगों ने खूब सराहा। इसके अलावा 'गिरगौं बटी पुजि गैछू कालामुनि मंदिरा..', 'क्या भलो लागैछो साली मिलन-जोहार..', 'ए भुला तू का गैछै छोडि़ आपण मुलुक जोहारा' गीत भी पसंद किए गए। शेरु मर्तोलिया और भाना दरम्याणि की सच्ची प्रेम गाथा पर आधारित लोक गायक प्रह्लाद मेहरा के गीत 'सूपा भरी धाना मेरी भाना दरम्याणि' और 'साली लस्पाली त्वे मिलड़ औलौ साली लस्पा बुग्याला' को भी खासा सराहा गया।
इसी तरह लोक गायक गणेश मर्तोलिया ने 'भल मेरो जोहार, भल मेरो मुनस्यार..', फौजी ललित मोहन जोशी ने 'हमी शौकारा हमर देश ज्वारा..', लोक गायिका माया उपाध्याय ने 'आदू संसार, आदू मुनस्यार..' और जितेंद्र तोमक्याल ने 'हिट शहरी म्यार जोहार-मुनस्यारा..' गीत से जोहार के सौंदर्य का वर्णन किया। अब भी इन पर कई गीत बन रहे हैं।
जोहरी संस्कृति को रं बतलाना ओर रं को जोहरी संस्कृति यह कुछ असहज अहसास है हम सभी संस्कृतियो का सम्मान करते है ,पर लेखकों को उत्तराखंड की सांस्कृतिक विविधता के प्रति संवेदनशील होनी चाहिये,
ReplyDeleteदिनेश निखुर्पा,
निखुरपा जी आपकी प्रतिक्रिया का सम्मान. थोड़ा स्पस्ट करें कि इस तरह की गलती कहाँ पर हुई है? क्या फ़ोटो कैप्शन में?
ReplyDeleteजानकारी से भरपूर आलेख । दूसरे फोटो के कैप्शन में सुधार अपेक्षित । जोहारी महिलाएं दिख रही हैं जबकि कैप्शन में धारचूला लिखा है।
ReplyDeleteछोटी-छोटी गलतियां होती रहती हैं, सुधार भी जरूरी है। आप लिखते रहिए ।
ढेर सारी शुभ कामनाएँ ...
निखुर्पा जी धन्यवाद। संशोधित कर दिया गया है।
Deleteस्वास्थ्य और फिटनेस के लिए आपके युक्तियाँ और सुझाव बहुत प्रेरणादायक हैं। शाबाश! यह भी पढ़ें पप्पू कार्की जीवन परिचय
ReplyDelete