Monday, 15 October 2018

पहल: सोशल मीडिया से बचा रहे लोक की थात


गणेश पांडे:: बदलते समय की चकाचौंध का असर उत्तराखंड की लोक परंपराओं पर भी पड़ा है। शादी-विवाह जैसे शुभ अवसरों पर शगुन आंखर (मांगलिक गीत) गाने की परंपरा धीरे-धीरे गुजरे जमाने की बात होते जा रही है। मांगलिक अवसरों पर बुजुर्ग गीदारों की कर्णप्रिय धुन अब कम सुनाई पड़ती है। शगुन आंखर गायन की अद्भुत परंपरा फिर से जीवंत हो, इसके लिए कुछ लोगों ने नायाब पहल की है।
मांगलिक गीतों को विवाह, नामकरण, यज्ञोपवीत जैसे अवसर पर गाया जाता है। ङ्क्षहदू शास्त्रों में भी मांगलिक गीत गाने का उल्लेख मिलता है। मगर बदलते समय के साथ यह परंपरा धीरे धीरे पीछे छूटती जा रही है। घरों में होने वाले विवाह आयोजन होटल, बारात घर, बैंक्वेट हॉल तक पहुंच गए हैं। ऐसे में गीदारों को खोलना मुश्किल हो जाता है। संस्कृति प्रेमियों ने मांगलिक गीतों ऑडियो तैयार कर यूट्यूब पर अपलोड की है। जिन्हें शुभअवसरों पर मोबाइल फोन पर कहीं भी बजाया जा सकेगा।


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इन गीतों को किया संग्रहित
पुण्य वाचन गीत, हल्दी गीत, देव निमंत्रण, गणेश पूजन, मातृ पूजा, कलश पूजा, पितृ निमंत्रण, नवग्रह पूजा, ज्योति पूजा, संध्या गीत, निमंत्रण गीत, सुवाल पथाई गीत, भात न्यूतने के गीत, बारात आने के गीत, धूली अघ्र्य गीत, कन्यादान तैयारी गीत, शय्या दान गीत, विदाई गीत, नामकरण गीत, बन्ना-बन्नी गीत, मंगल गीत।
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शगुन आंखर के 56 गीतों का संकलन
मांगलिक गीतों के गुलदस्ते में 20 अलग-अलग प्रकार के 56 गीतों को संकलित किया गया है। जिन्हें मौके के अनुसार बजाया जा सकता है। संकलन कर्ता लता कुंजवाल कहती हैं इससे नई पीढ़ी अपनी प्राचीन परंपरा से रूबरू हो सकेगी।
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इनका रहा योगदान
शिखर सांस्कृतिक विकास समिति अल्मोड़ा की लता कुंजवाल के शोध व संकलन से शगुन आंखर की ऑडियो तैयार हुई। लता कुंजवाल, मीनू जोशी, शमिष्ठा बिष्ट की आवाज, हेमंत बिष्ट के पाश्र्व स्वर, अमर सब्बरवाल, आनंद बिष्ट के संगीत, मिक्सिंग इंजीनियर नितेश बिष्ट, जुगल किशोर पेटशाली के परामर्श से गीत तैयार हुए।
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आज की पीढ़ी शगुन आंखरों को भूलती जा रही है। बच्चों को तो मालूम भी नहीं कि ऐसी भी कोई परंपरा रही है। ऐसे में शगुन आंखर को सोशल प्लेटफार्म पर लाना सराहनीय प्रयास है।
- जुगल किशोर पेटशाली, लेखक एवं संस्कृति कर्मी

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