
गांधी नगर वार्ड एक निवासी 45 वर्षीय रानी मैसी के पति बबलू मैसी माली का काम करते थे। तीन साल पहले एक दिन गिरने से उनके सिर पर चोट लग गई। दिमागी चोट के कारण अक्सर उन्हें चक्कर आ जाता। शहर के निजी अस्पताल से इलाज चला। महीने की हजार-बारह सौ की दवा का खर्च उठाना परिवार पर भारी पड़ रहा था। इकलौती बेटी मोहिनी ने कुछ माह पहले ही मुरादाबाद के नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लिया था। परिवार के एकमात्र कमाऊ व्यक्ति के बिस्तर पकडऩे से परिवार आर्थिक संकट से घिर गया।
आज रानी ई-रिक्शा की एजेंसी व सर्विस सेंटर चला रही हैं। देवर, एक कारीगर व एक युवती दुकान पर रहते हैं। जीएनएम की पढ़ाई पूरी कर चुकी मोहिनी ट्रेनिंग कर रही है। रानी के लिए यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था।

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पहले ताने देते थे अब देते सम्मान
आठवीं तक पढ़ी रानी के सामने आसान विकल्प था कि दूसरों के घरों का चूल्हा-बर्तन करे। आसपास के लोग भी यही सुझाते थे। ई-रिक्शा चलाने की ठानी तो महिलाएं ताना मारती अब ये आदमियों वाला करेगी। हालांकि अब यही लोग रानी को सम्मान देते हैं।
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महिलाओं को बना रही आत्मनिर्भर
रानी मैसी अब तक तीन महिलाओं को ई-रिक्शा चला सीखा चुकी हैं। हल्द्वानी के अलावा बाजपुर, किच्छा से महिलाएं प्रशिक्षण लेने पहुंच रही हैं। रानी कहती हैं ई-रिक्शा ही नहीं, स्वाभिमान जगाने वाले कई दूसरे कामों से भी महिलाएं खुद के पैरों पर खड़ी हो सकती हैं। ठान लें तो कोई काम मुश्किल नहीं।
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बढ़ गया आत्मविश्वास
रानी को प्रेरित करने में देवर एस चरण 'बंटीÓ का अहम योगदान रहा। रानी समूह से जुड़ी। बैंक से ई-रिक्शा फाइनेंस कराया। कभी साइकिल तक को हाथ न लगाने वाली रानी ने देवर से ई-रिक्शा चलाना सीखा। आत्मविश्वास बढ़ा तो बाद में स्कूटी चलाना सीखी। गाजियाबाद, मुरादाबाद स्कूटी से आती-जाती हैं।
(- गणेश पांडे की रानी से बातचीत पर आधारित)
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