गणेश पांडे::बदलते समय की चकाचौंध का असर उत्तराखंड की लोक परंपराओं पर भी पड़ा है। शादी-विवाह जैसे शुभ अवसरों पर शगुन आंखर (मांगलिक गीत) गाने की परंपरा धीरे-धीरे गुजरे जमाने की बात होते जा रही है। मांगलिक अवसरों पर बुजुर्ग गीदारों की कर्णप्रिय धुन अब कम सुनाई पड़ती है। शगुन आंखर गायन की अद्भुत परंपरा फिर से जीवंत हो, इसके लिए कुछ लोगों ने नायाब पहल की है। मांगलिक गीतों को विवाह, नामकरण, यज्ञोपवीत जैसे अवसर पर गाया जाता है। ङ्क्षहदू शास्त्रों में भी मांगलिक गीत गाने का उल्लेख मिलता है। मगर बदलते समय के साथ यह परंपरा धीरे धीरे पीछे छूटती जा रही है। घरों में होने वाले विवाह आयोजन होटल, बारात घर, बैंक्वेट हॉल तक पहुंच गए हैं। ऐसे में गीदारों को खोलना मुश्किल हो जाता है। संस्कृति प्रेमियों ने मांगलिक गीतों ऑडियो तैयार कर यूट्यूब पर अपलोड की है। जिन्हें शुभअवसरों पर मोबाइल फोन पर कहीं भी बजाया जा सकेगा।
::::::::::: इन गीतों को किया संग्रहित पुण्य वाचन गीत, हल्दी गीत, देव निमंत्रण, गणेश पूजन, मातृ पूजा, कलश पूजा, पितृ निमंत्रण, नवग्रह पूजा, ज्योति पूजा, संध्या गीत, निमंत्रण गीत, सुवाल पथाई गीत, भात न्यूतने के गीत, बारात आने के गीत, धूली अघ्र्य गीत, कन्यादान तैयारी गीत, शय्या दान गीत, विदाई गीत, नामकरण गीत, बन्ना-बन्नी गीत, मंगल गीत। :::::::::::::: शगुन आंखर के 56 गीतों का संकलन मांगलिक गीतों के गुलदस्ते में 20 अलग-अलग प्रकार के 56 गीतों को संकलित किया गया है। जिन्हें मौके के अनुसार बजाया जा सकता है। संकलन कर्ता लता कुंजवाल कहती हैं इससे नई पीढ़ी अपनी प्राचीन परंपरा से रूबरू हो सकेगी। ::::::::::: इनका रहा योगदान शिखर सांस्कृतिक विकास समिति अल्मोड़ा की लता कुंजवाल के शोध व संकलन से शगुन आंखर की ऑडियो तैयार हुई। लता कुंजवाल, मीनू जोशी, शमिष्ठा बिष्ट की आवाज, हेमंत बिष्ट के पाश्र्व स्वर, अमर सब्बरवाल, आनंद बिष्ट के संगीत, मिक्सिंग इंजीनियर नितेश बिष्ट, जुगल किशोर पेटशाली के परामर्श से गीत तैयार हुए। :::::::::: आज की पीढ़ी शगुन आंखरों को भूलती जा रही है। बच्चों को तो मालूम भी नहीं कि ऐसी भी कोई परंपरा रही है। ऐसे में शगुन आंखर को सोशल प्लेटफार्म पर लाना सराहनीय प्रयास है। - जुगल किशोर पेटशाली, लेखक एवं संस्कृति कर्मी
उत्तराखंड की पहली महिला ई-रिक्शा चालक के तौर पर पहचान बनाने वाली रानी मैसी आधी आबादी के लिए मिसाल बन चुकी हैं। रानी कहती हैं ढ़ाई साल पहले अगर मैंने साहस नहीं दिखाया होता तो आज भी वह गुमनाम होती। परिवार पहले की तरह मुश्किलों में होगा। बेटी की पढ़ाई पूरी हो पाती या नहीं, यह कहते हुए उनका गला भर आता है..। गांधी नगर वार्ड एक निवासी 45 वर्षीय रानी मैसी के पति बबलू मैसी माली का काम करते थे। तीन साल पहले एक दिन गिरने से उनके सिर पर चोट लग गई। दिमागी चोट के कारण अक्सर उन्हें चक्कर आ जाता। शहर के निजी अस्पताल से इलाज चला। महीने की हजार-बारह सौ की दवा का खर्च उठाना परिवार पर भारी पड़ रहा था। इकलौती बेटी मोहिनी ने कुछ माह पहले ही मुरादाबाद के नर्सिंग कॉलेज में दाखिला लिया था। परिवार के एकमात्र कमाऊ व्यक्ति के बिस्तर पकडऩे से परिवार आर्थिक संकट से घिर गया। आज रानी ई-रिक्शा की एजेंसी व सर्विस सेंटर चला रही हैं। देवर, एक कारीगर व एक युवती दुकान पर रहते हैं। जीएनएम की पढ़ाई पूरी कर चुकी मोहिनी ट्रेनिंग कर रही है। रानी के लिए यह मुकाम हासिल करना आसान नहीं था। ::::::::: पहले ताने देते थे अब देते सम्मान आठवीं तक पढ़ी रानी के सामने आसान विकल्प था कि दूसरों के घरों का चूल्हा-बर्तन करे। आसपास के लोग भी यही सुझाते थे। ई-रिक्शा चलाने की ठानी तो महिलाएं ताना मारती अब ये आदमियों वाला करेगी। हालांकि अब यही लोग रानी को सम्मान देते हैं। ::::::::::: महिलाओं को बना रही आत्मनिर्भर रानी मैसी अब तक तीन महिलाओं को ई-रिक्शा चला सीखा चुकी हैं। हल्द्वानी के अलावा बाजपुर, किच्छा से महिलाएं प्रशिक्षण लेने पहुंच रही हैं। रानी कहती हैं ई-रिक्शा ही नहीं, स्वाभिमान जगाने वाले कई दूसरे कामों से भी महिलाएं खुद के पैरों पर खड़ी हो सकती हैं। ठान लें तो कोई काम मुश्किल नहीं। ::::::::::: बढ़ गया आत्मविश्वास रानी को प्रेरित करने में देवर एस चरण 'बंटीÓ का अहम योगदान रहा। रानी समूह से जुड़ी। बैंक से ई-रिक्शा फाइनेंस कराया। कभी साइकिल तक को हाथ न लगाने वाली रानी ने देवर से ई-रिक्शा चलाना सीखा। आत्मविश्वास बढ़ा तो बाद में स्कूटी चलाना सीखी। गाजियाबाद, मुरादाबाद स्कूटी से आती-जाती हैं। (- गणेश पांडे की रानी से बातचीत पर आधारित)
पर्दे के पीछे की लीला : लाइव लीला पर्दे के आगे ही नहीं पीछे भी होती है। कक्षा सात में पढऩे वाला अभिषेक व आठवीं का दीपक स्कूल से लौटने ही रामलीला मैदान पहुंच गए हैं। वह सीधे डे्रसिंग रूम पहुंचते हैं। दोपहर के दो बजने में अभी कुछ मिनट बाकी हैं, लेकिन कलाकारों का मेकअप शुरू हो गया है। साथियों को तैयार देख अभिषेक व दीपक मेकअप आर्टिस्टों की तरफ लपकते हैं। पिछली पंक्ति में बैठा दीपक साथियों से कहना है आज स्कूल था तो आने में देर हो गई। खाना भी नहीं खा पाया। जवाब में अभिषेक कुछ कहता, हाथ में ब्रश थामे गोस्वामी अंकल बोल पड़े, अब किसी अन्य कलाकार को तैयार नहीं किया जाएगा।
उत्साहित दिख रहे अभिषेक और दीपक के चेहरे पर अब थोड़ी चिंता दिखने लगी है। गोस्वामी अंकल अपने साथी गब्बर और ठाकुर की तरफ इशारा करते हुए कहते हैं- देखो, अब किसी को तैयार मत करना। जो लिस्ट हमें मिली थी उसके अनुसार रावण सेना के लिए चार राक्षस व ऋषि-मुनि के किरदार के लिए चार पात्र तैयार हो गए हैं। यह सुन अभिषेक बाहर की तरफ चला गया। बाहर कुछ लोग स्टेज की सजावट में लगे हैं। बाहर की तरफ गया अभिषेक पात्र जुटाने की जिम्मेदारी देख रहे अंकल को ड्रेसिंग रूम में ले आया। अभिषेक देरी से आने की मजबूरी बताते हुए कहता है उसे रोल करना है। कुछ सोचने के बाद दीपक, अभिषेक को द्वारपाल व हेमंत को नंदी का रोल देने की सहमति बनती है। तीनों मेकअप आर्टिस्ट के सामने तैयार होने के लिए बैठ जाते हैं। तीनों के चेहरे पर जीत की चमक बिखर चुकी है। गोस्वामी अंकल कहते हैं थोड़ी जल्दी हाथ चलाएं, साढ़े चार बजे से लीला शुरू हो जाएगी। इधर, ड्रेसिंग रूम में अब थोड़ी रोनक बढऩे लगी है। करीब २५-३० वर्षों से शहर की प्राचीन रामलीला से जुड़े मेकअप आर्टिस्ट नरेश गोस्वामी, गब्बर गौड़, ठाकुर विश्व प्रकाश पहले किरदार निभाते थे। अब पर्दे के पीछे रहकर राम सेवा करते हैं। (- रामलीला के ड्रेसिंग रूम से गणेश पांडे)