Saturday, 11 August 2018

कहानी : सैलरी



सतेंद्र डंडरियाल  :

सैलरी कब छोटी से बड़ी हो गई पता ही नहीं चला। तब मां ने कहा था, लो आ गई तुम्हारी सैलरी, अब संभालो इसे। मोहल्ले वालों ने प्यार-प्यार में बच्ची का नाम सैलरी ही रख दिया। प्यार से सब उसे सैलरी ही बुलाते थे।

रामदुलारी पेट से थी। नवां महीना चल रहा था। अस्पताल और दाई के खर्चों के लिए रामदुलारी की सास अपने बेटे रामवतार को बार-बार फोन कर कहती, पैसे भेज दो तो रामअवतार का यही जवाब होता कि अभी सैलरी नहीं आई। एक दिन वह वक्त भी आया जब रामदुलारी की बेटी पैदा हुई। मां ने बेटे को खुशखबरी देने के लिए फोन किया और साथ में यह भी कह दिया कि तुम्हारी सैलरी आ गई। मां का फोन नंबर देखते ही बेटे को लगा कि जरूर सैलरी के बारे में पूछेगी। उसने फोन उठाया, मां के कुछ कहने से पहले ही बोल पड़ा अभी सैलरी नहीं आई। मां ने कहा वो छोड़ अब तो सचमुच तेरी सैलरी आ गई, बेटी पैदा हुई है। रामअवतार बोला बहुत अच्छा है मां मैं जल्द ही छुट्टी लेकर घर आऊंगा।

गांव से दूर रामअवतार शहर की एक फैक्ट्री में चौकीदारी का काम करता था। फैक्ट्री काफी समय से बंद पड़ी थी। रामअवतार की जिम्मेदारी में केवल फैक्ट्री के बंद गेट पर पहरा देना था। तीन साल पहले शादी हुई थी। उसके बाद रामअवतार रोजगार की तलाश में शहर आ गया। यहां जैसे तैसे एक फैक्ट्री में चौकीदारी की नौकरी मिल गई। दो-तीन महीने में फैक्ट्री का मैनेजर एक चक्कर लगाकर रामअवतार को कुछ पैसे दे जाता। तीन-चार महीनों में भी उसे एक महीने की तनख्वाह मिलती। रहने का ठिकाना फैक्ट्री में ही था। कभी कभार वह घर थोड़ा बहुत पैसे भेज दिया करता था। शादी के बाद उसके घर में पहला बच्चा होने वाला था। रामअवतार भीतर-ही-भीतर बहुत खुश था, लेकिन इस बार छह महीने से उसे एक भी पैसा नहीं मिला। उसके पास फैक्ट्री के मैनेजर का फोन नंबर तो था, पर बार-बार फोन करने के बाद भी मैनेजर यही कहता ठीक है कल आऊंगा परसो आऊंगा, तुम्हारे पैसे कहीं भागे नहीं जा रहे हैं। प्रसव के दौरान वह रामदुलारी को देखने भी नहीं जा सका। बच्ची पैदा होने के दस दिन बाद रामअवतार गांव पहुंचा। घर पहुंचते ही मां ने कहा यह देख तेरी सैलरी आ गई। रामअवतार ने अपनी फूल सी बच्ची को गोद में उठाया तो खुशी से उसकी आंखों में आंसू छलक गए। खुशी खुशी तीन-चार दिन घर में बिताए और वापस शहर लौट गया। घर में बच्चे को देखने के लिए आसपास की औरतें आती तो मां कहती यह सैलरी है। सैलरी जब पेट में थी तब इसके बाप की सैलरी नहीं आई और यह पहले आ गई। यह सब वह अपनी बहू को ताने के तौर पर सुनाती। मोहल्ले की औरतें पुचकारती सैलरी को थी और सुनाती रामदुलारी को।
वक्त बीत रहा था सैलरी अब बड़ी हो रही थी। रामअवतार जब कभी घर फोन करता तो रामदुलारी कहती तुम्हारी सैलरी तुम्हें बहुत याद करती है। टुकुर टुकुर तुम्हारी फोटो देखती है। तुम्हारी आवाज सुनती है, अब तीन महीने की हो गई है। इस बार घर आओगे तो सैलरी के लिए अच्छी सी फ्रॉक लाना।
बरसात का मौसम बीत रहा था। अब सर्दियां दस्तक देने वाली थी। फैक्ट्री के कमरे में रामअवतार के पास एक चारपाई कुछ बर्तन और पांच किलो के छोटे सिलेंडर के अलावा कुछ भी नहीं था। जैसे तैसे दिन काट रहे रामअवतार की आंखों के आगे रात दिन की बच्ची का चेहरा घूमता। फूल सा मासूम खिलखिलाता हुआ चेहरा। सपने में उसे रंग बिरंगी फ्रॉक नजर आती। मई के महीने की सैलरी रामअवतार को सितंबर में मिली। अगले ही दिन वह बाजार गया। कई दुकानों के चक्कर लगाने के बाद एक फ्रॉक पसंद आई। जिसे उसने अपनी बच्ची के लिए खरीद लिया। मैनेजर से एक हफ्ते की छुट्टी लेकर गांव पहुंचा। मां से मुलाकात हुई। मां ने फिर छूटते ही कह दिया अब तो तुम्हारी सैलरी टाइम पर आ जाती होगी।
हां मां टाइम पर तो क्या। गहरी सांस भरते हुए रामअवतार ने कहा था। बोला, मैनेजर साहब ज्यादातर बाहर रहते हैं। जब शहर आते हैं तो सैलरी भी दे जाते हैं।
मैं सोच रही हूं घर बहुत पुराना हो चुका है इस बार की बरसात में जगह जगह से टपकता रहा। थोड़े बहुत पैसे हो जाते तो छत की मरम्मत करवा देते। मैंने मिस्त्री से बात की थी वो बोला दस हजार लगेंगे।
हां मां मरम्मत तो करवानी पड़ेगी नहीं तो छत गिर जाएगी। अगली बार सैलरी आएगी तो पैसे भेज दूंगा। अरे इस सैलरी को दूध क्यों नहीं पिलाती है। कितनी देर से चिल्ला-चिल्लाकर आसमान सिर पर उठा रखा है। रामदुलारी बोली मांजी अभी कुछ देर पहले ही तो पिलाया था। फिर भूख लग गई होगी।
शाम ढल रही थी रामअवतार अगली सुबह शहर जाने की तैयारी में जुटा हुआ था। रात को भोजन के बाद रामदुलारी से बात करने की फुर्सत मिली। तो कहने लगा हम अपनी बेटी को खूब पढ़ाएंगे। मैं इसे शहर के अच्छे स्कूल में भर्ती करवाऊंगा। देखना एक दिन हमारी बेटी हमारा नाम रोशन करेगी।
और सुनो! तुम उसे सैलरी-सैलरी मत कहा करो। मुझे यह नाम बिल्कुल पसंद नहीं। बच्चों का जैसा नाम होता है वैसा नाम रखो। अभी तो सब प्यार-प्यार में हंसी-ठिठोली में सैलरी सैलरी कह रहे हैं। बाद में कहीं यही नाम पड़ गया तो। कितनी सुंदर और गोल मटोल है हमारी बच्ची। इसका नाम तो राधा होना चाहिए। तुम स्कूल में यही नाम लिखवाना। अरे सुन रही हो या सो गई। लो उसने सुना ही नहीं और मैं खामखां नाम सुझाने में उलझा रहा।
सुबह की पहली बस से रामअवतार शहर आ गया। फिर से बंद फैक्ट्री के गेट पर चौकीदारी करने के लिए। अब अक्सर रामदुलारी से फोन पर बातें होती रहती। बच्ची के हाल-चाल उसकी शरारतें सुनकर वह मन ही मन खुश होता। समय पंख लगा कर मानो उड़ रहा था। रामदुलारी ने कहा सैलरी का आंगनबाड़ी में दाखिला करवा दिया है। क्या नाम लिखवाया। रामअवतार ने उत्सुकता वश पूछा था। रामदुलारी बोली, नाम तो सैलरी ही लिखा है।
रामअवतार सोचने लगा नाम में क्या रखा है सैलरी ही सही। वैसे भी सैलरी के पीछे दुनिया पागल है। आंगनबाड़ी से होते हुए सैलरी अब स्कूल जाने लगी। यहां भी मास्टरजी ने उसका नाम सैलरी लिख दिया। बोले बड़ा अंग्रेजी सा नाम रखा है मां-बाप ने तेरा। बूढ़ी मां अब अक्सर बीमार रहने लगी उम्र का तकाजा था। रामअवतार के पैदा होने के कुछ ही महीनों के बाद उसके बापू चल बसे। तब से चार बच्चों की परवरिश का जिम्मा अकेले ही सम्भाला। तीन बेटियों के हाथ पीले किए। चार भाई बहिनों में सबसे छोटे रामवतार की जिम्मेदारी सिर पर थी वह भी पूरी हुई। मन में बिना कोई बोझ लिए एक दिन बूढ़ी मां खाली हाथ दुनिया से रुखसत हो गई।
रामअवतार कई दिनों तक घर में गुमसुम रहा। अब उसने रामदुलारी को अपने साथ शहर ले जाने का फैसला किया। तीन साल की हो चुकी सैलरी घर में भीड़भाड़ देखकर काफी खुश नजर आ रही थी। इस माहौल में भी लोग प्यार से कह देते सैलरी तो आप अपने बापू के साथ शहर जाएगी। टिन के बक्शे में थोड़ा बहुत सामान समेट कर रामअवतार अपनी पत्नी और बच्ची को लेकर शहर रवाना हो गया। पास के एक स्कूल में बच्ची का दाखिला करा दिया। पंचायत से मिले प्रमाणपत्र के आधार पर स्कूल में बच्ची का नाम सैलरी ही दर्ज किया गया।
वक्त यूंही बीत रहा था। घर का खर्च चलाने के लिए अब सैलरी की मां भी आसपास के घरों में काम करने लगी। सैलरी धीरे-धीरे बड़ी हो रही थी। इधर काफी समय से बंद पड़ी फैक्ट्री के दोबारा खुलने की भी सुगबुगाहट ने रामवतार के साथ ही कई मजदूरों के चेहरों पर खुशी ला दी। रामअवतार सोचने लगा फैक्ट्री चालू हो जाएगी तो कम से कम उसे सैलरी वक्त पर मिल जाया करेगी।
सैलरी को धीरे-धीरे अपने नाम का मतलब भी समझ आने लगा। पढ़ाई में उसका खूब मन लगता। रामदुलारी भी कहती पढ़ेगी नहीं तो मेरे जैसे अंगूठा छाप रह जाएगी। पहली ही कक्षा में सैलरी ने अव्वल दर्जा हासिल किया। साल-दर-साल सैलरी बढ़ती गई। प्राथमिक से उच्च प्राथमिक स्कूल में दाखिला हुआ तो स्कूल में उसके नाम को लेकर काफी चर्चाएं होती।
साथ पढऩे वाली लड़कियां उससे पूछती तुम्हारा नाम सैलरी किसने रखा, बड़ा इंट्रस्टिंग नाम है।
यह नाम मुझे मेरी दादी ने दिया था। मैंने एक दिन मां से पूछा था तो मां ने कहा तेरी दादी ही तेरा नाम रख गई।
सैलरी इस नाम को बचपन से सुनते आ रही थी। इसलिए उसे यह नाम उसे कभी अटपटा नहीं लगा। कई बार उसे स्कूल के शिक्षकों ने सुझाव भी दिया कि तुम अपना नाम बदल लो, लेकिन सैलरी ने कभी इस पर ध्यान नहीं दिया। जो नाम था वह यूं ही चलता रहा। हाईस्कूल में एक बार फिर मौका दिया गया कि वह अपना नाम चेंज करवाना चाहे तो करवा सकती है। बस इसके लिए एक शपथपत्र देना होगा, लेकिन सैलरी ने अपना नाम चेंज नहीं करवाया। रामअवतार बहुत खुश होता कि उनके खानदान से पहली बार कोई दसवीं तक पहुंचा है। वरना ज्यादातर पांचवीं पास के बाद ही हार मान गए।
सैलरी अब अपने नाम का अर्थ बहुत अच्छी तरह से जानती थी। उसे पता चला कि 'सैलरी' शब्द लैटिन भाषा के 'सैलेनियम' से आया है, जिसका मतलब होता है 'नमक'। प्राचीन ईरान में इसका मतलब था, राजा की सेवा करना और भरण-पोषण के तौर पर राजा से सैलरी प्राप्त करना।
सैलरी ने जब अपने बापू और मां को यह बात बताई तो दोनों खूब हंसे। रामअवतार बोले तेरी दादी को शायद यह बात पता रही होगी। उन्होंने कभी हमें तो नहीं बताया, लेकिन तुम्हारा नाम सैलरी रख दिया। जिसकी सबको जरूरत है। सैलरी ने दसवीं में स्कूल टॉप किया तो रामअवतार की खुशी का ठिकाना नहीं रहा। आज उसने मिठाई बांटी। सैलरी अब स्कूल में सबकी चहेती बन गई। शिक्षक कहते बेटी हाईस्कूल में तुमने हमारा नाम रोशन किया। अब आगे तुमसे उम्मीदें बढ़ गई हैं। तुम हमारे स्कूल का नाम पूरे जिले में ऊंचा करो।
सब कुछ ठीक चल रहा था सैलरी अपनी मेहनत के बल पर आगे बढ़ रही थी। अब वह वक्त भी आया जिसका उसे बेसब्री से इंतजार था। स्कूल की शिक्षा पूरी हुई और कॉलेज में दाखिला लिया। इधर एक बार फिर फैक्ट्री में कामकाज शुरु हो चुका था। बाइस-तेईस सालों में पहली बार रामअवतार की सैलरी वक्त पर आई। ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी करने के बाद सैलरी ने प्रशासनिक सेवाओं में सफलता प्राप्त करने के लिए दिन रात एक कर दिया। वह मां से कहती जब मैं कलेक्टर बन जाऊंगी तो पहली सैलरी तुम्हारे हाथ में दूंगी। रामअवतार उसकी बातों को सुनकर कहता सैलरी कब बड़ी हो गई पता ही नहीं चला। काश इस वक्त मां जिंदा होती तो मैं कहता देखो मां मेरी सैलरी भी बढ़ गई और वक्त पर भी आने लगी है, बल्कि अब तो बोनस मिलने वाला है। हंसी के ठहाके लगा रहे रामअवतार और रामदुलारी का मुंह सैलरी ने लड्डू से बंद कर दिया।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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