Sunday, 10 March 2019

पेंटिंग की नई कला इजात, हीरा ने गेहूं के पौंध की डंठल से तैयार की एक से एक तस्वीरें

हीरा तस्वीरों को ऐसा उभारते हैं कि दिल छू लेती हैं।

गणेश पांडे। ब्रश व रंगों की मदद से कागज व कैनवास पर पेंटिंग बनाते आपने कइयों को देखा होगा, लेकिन हल्द्वानी के हीरा सिंह कोरंगा को रद्दी कागज और बेकार वस्तुओं से पेंटिंग बनाने में विशेषज्ञता हासिल है। गेहूं पौधे के डंठल, कुश घास से तैयार ये पेंटिंग ऐसी होती हैं कि देखने वाला देखता रह जाए। पुराने ग्रिटिंग कार्ड, कलैंडर से तैयार पेंटिंग भी लाजवाब होती है। 

हीरा की बनाई पेंटिंग में प्रकृति, देवी-देवता और मानवीय जनजीवन से लेकर राजनीतिक शख्सियत तक शामिल हैं। शहर के देवलचौड़ इलाके में रहने वाले हीरा सिंह परिवार पालने के लिए जनरल स्टोर की दुकान चलाते हैं। चित्रकला का जुनून ऐसा कि दुकान में बैठे-बैठे काउंटर पर पेंटिंग बनाने में मशगूल रहते हैं। दुकान का पिछला कमरा पेंटिंग से भरा है। दो साल में हीरा दो सौ से अधिक पेंटिंग बना चुके हैं।
चित्रकार हीरा सिंह कोरंगा।

तजुर्बे ने बना दिया कलाकार
 मूलरूप से पिथौरागढ़ जिले के रहने वाले 36 वर्षीय हीरा सिंह कोरंगा ने हाइस्कूल तक की पढ़ाई की है। हीरा बताते हैं उन्होंने किसी तरह का प्रशिक्षण नहीं लिया। स्कूली दिनों में छात्राओं को कपड़े पर कढ़ाई करते देखते थे। यहीं से इच्छा जगी व प्रयोग शुरू कर दिया। धीरे-धीरे तजुर्बा होता गया और पेंटिंग सुधरती चली गई।

हुनर के हाथों को काम की कमी नहीं

बुढ़ापा वक्त का तकाजा है, जवानी सौंदर्य की प्रतिमूर्ति।
हीरा का कहना है हुनर रखने वालों के लिए काम की कमी नहीं है। बतौर हीरा 'लोग रोजगार कहते हैं, मैं हुनर कहता हूं।' क्रिएटिव व लीक से हटकर काम करने वालों के लिए स्वरोजगार के तमाम मौके हैं।
तस्वीर ऐसी उकेरी की हूबहू उतर गई।
स्कूलों में जाकर बच्चों को सिखाने की इच्छा 
 घास व कागज की रद्दी के बाद हीरा सिंह अब बांस में प्रयोग शुरू कर रहे हैं। दूसरों को हुनरमंद बनाने की लालसा रखने वाले हीरा सिंह स्कूलों में जाकर बच्चों को पेंटिंग बनाना सिखाना चाहते हैं। एक-दो स्कूल से बात शुरू की है। हीरा का नौ साल का बेटा कृष्णा भी देखा-देखी पेंटिंग में रुचि लेने लगा है।

ऐसे भी शिक्षक, जिन्होंने खुद के प्रयासों से बदल दी सरकारी स्कूल की तस्वीर

शिक्षक भाष्कर जोशी।

सुबह देरी से स्कूल पहुंचने व शाम को घर लौटने की जल्दी में रहने वाले कर्मचारियों के लिए शिक्षक भाष्कर जोशी मिसाल बनकर उभरे हैं। अल्मोड़ा जिले के राजकीय प्राथमिक विद्यालय बजेला में कार्यरत जोशी ने बच्चों की पढ़ाई की खातिर गांव में डेरा डाल लिया।

मूलरूप से सोमेश्वर के रहने वाले जोशी ने अगस्त 2013 में बजेला स्कूल में कार्यभार संभाला। अल्मोड़ा से 55 किमी दूर बजेला स्कूल तक पहुंचने के लिए छह किमी पैदल चलना होता है। इसे देखते हुए जोशी स्कूल के पास किराए के कमरे में रहने लगे। तब विद्यालय में दस बच्चे थे। जोशी ने रचनात्मक गतिविधियों व नवाचारी प्रयोग से बच्चों में रुचि जगाई। नतीजतन अभिभावकों ने प्राइवेट स्कूल में पढऩे वाले बच्चों का सरकारी स्कूल में दाखिला करा दिया। आज विद्यालय में 24 बच्चे पढ़ते हैं।


प्रावि बजेला के बच्चों ने ऐसे मॉडल तैयार किए हैं कि कान्वेंट
 स्कूलों के बच्चे भी देखते रहे जाएं।
शनिवार को होती हैं नवाचार गतिविधि
विद्यालय में शनिवार को आर्ट-क्राफ्ट, फ्रेब्रिक पेंटिंग, चित्रकला, कविता, कहानी लेखन में बीतता है। बच्चे कॉमिक्स तैयार करते हैं। बजेला जागरण नाम से निकलने वाली मासिक पत्रिका में क्षेत्रीय समाचारों व बच्चों की एक्टिविटी प्रकाशित होती है।

अंग्रेजी में नाटक प्रस्तुत करते हैं बच्चे 
अंग्रेजी के नाम से भय खाने वाले बच्चे आज इंग्लिश में नाटक का मंचन करते हैं। इंग्लिश बोलने का धारा प्रवाह ऐसा कि अंग्रेजी मीडियम स्कूल के बच्चे पीछे छूट जाए। बच्चों के बनाए मॉडल देखने लायक होते हैं। शिक्षक ने अपने खर्च से विद्यालय में प्रोजेक्टर लगाया है। पांच साल में विद्यालय की तस्वीर बदल गई। स्वयंसेवी संस्थाएं स्कूल से जुडऩे लगी हैं।