:::स्मृति शेष:::
गणेश पांडे, हल्द्वानी : मोर्चरी के बाहर पोस्टमार्टम के लिए लाए जाने वाले के परिजन, पुलिस वाले और पत्रकार ही दिखाई देते हैं। मगर शनिवार को मोर्चरी के बाहर नजारा दूसरा था। भीड़ में तमाम लोग ऐसे थे, लोक गायक पप्पू कार्की जिनके न तो रिश्तेदार थे और न पारिवारिक संबंधी। कई लोग अपने पसंदीदा कलाकार की अंतिम झलक पाने उमड़ आए थे। लोगों के दिलों में राज करने का ये मुकाम कार्की को लंबे संघर्ष के बाद हासिल हुआ था।
वर्ष 1998 में महज 14 वर्ष की आयु में पप्पू कार्की ने पहला गीत रिकॉर्ड कराया। मगर पहचान 2010 में आई 'झम्म लागछी' एलबम के 'डीडीहाट की झमना छोरी..' गीत से मिली। 12 साल के संघर्ष में पप्पूदा ने दिल्ली समेत कई महानगरों में हाथ-पांव मारे। 2003 से 2006 तक दिल्ली में पेट्रोल पंप, प्रिंटिंग प्रेस और बैंक में चपरासी तक की नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद रुद्रपुर का रुख किया और दो साल डाबर कपंनी में ठेकेदारी प्रथा में काम किया। पिछले दिनों अपने स्टूडियो में मुलाकात के दौरान पप्पूदा ने बताया था कि दर-दर भटकाव से परेशान होकर उन्होंने गांव लौटने का मन बना लिया था। इसी दौरान लोक गायक प्रह्लाद मेहरा व चांदनी इंटरप्राइजेज के नरेंद्र टोलिया के साथ मिलकर 'झम्म लागछी' एलबम की, इससे बाद पप्पू कार्की की जमीन तैयार होती चली गई। हालिया 'तेरी रंग्याली पिछौड़ी' वीडियो गीत एक मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं।::::::::::::
पंचेश्वर बांध पर लाना चाहते थे गीत
लोक गायक पप्पू कार्की के करीबी रहे लोक गायक संदीप आर्य ने बताया कि पप्पूदा ने पंश्चेश्वर बांध पर लोक गीत रचा था। 'न छोडू ईजा की माटी, न छोडू आपणी थाती' यानी अपनी मातृभूमि को नहीं छोड़ंगे और न अपनी जड़ों को छोड़ेंगे। सही समय आने पर वह इसे लोगों के बीच लाने की सोच रहे थे।
::::::::::::
ये सपने भी रह गए अधूरे
नीलम कंपनी के साथ कार्की तीन गीत, 'सुनै की थाली मा', 'रिमा-झिमा पानी' और 'ओ हिमा ह्यू पड़ो हिमाला' की रिकॉर्डिंग के लिए दिल्ली जाने वाले थे। इसके लिए 11 से 13 जून की तिथि तय थी। संदीप ने बताया उन्हें 10 जून की रात निकलना था। इस कारण वह रात ही गौनियारों से लौटने की बात कह रहे थे। छित्कू हिवाल ग्रुप के देवू पांगती के साथ मिलकर कुमाऊंनी रामलीला की रिकॉर्डिंग में जुटे थे। यह काम भी बीच में रुक गया है।
::::::::::
खुद भटकता रहे, दूसरों के लिए खोला स्टूडियो
पप्पूदा ने एक बार बताया कि शुरुआत के दिनों में वह स्टेज पर प्रस्तुति देने लगे थे। कई म्यूजिक कंपनी वाले उनकी गायकी को सराहते, लेकिन जब उनके स्टूडियो गए तो टहलाया जाता था। एक साल पहले दवुवाढूंगा में पीके इंटरप्राइजेज नाम से रिकॉर्डिंग स्टूडियो खोला। कई प्रशिक्षु गायकों ने खुद को यहां तरासा।
:::::::::
कुछ चर्चित लोकगीतऐ जा रे चैत बैशाख मेरो मुनस्यारा
बिर्थी कोला पानी बग्यो सारारा..
डीडीहाट की झमना छोरी
मधुली.. रूपै की रसिया
पहाणो ठंडो पांणी
तेरी रंगीली पिछौड़ी
छम छम बाजलि हो
No comments:
Post a Comment