इरादे अगर जवां हों तो मन में पल्लवित होते शौक के पूरा होने में ढलती उम्र भी बाधा नहीं बनती। जरूरत होती है तो केवल शिद्दत के साथ जुटने की। अगर जुट गए तो कारवां बढ़ते जाता है। डॉ. सतीश चंद्र अग्रवाल ऐसा ही नाम है। डॉ. अग्रवाल पेंटिंग बनाने के स्कूली दिनों के शौक को 66 की उम्र में साकार कर रहे हैं।
हल्द्वानी के नैनीताल रोड स्थित वैशाली कालोनी में रहने वाले अग्रवाल को स्कूली दिनों से पेंटिंग का शौक था। जब समय मिलता सादे कागज पर पेंसिल से महापुरुषों के रेखाचित्र बनाते। 1972 में एमबीपीजी कॉलेज से स्नातक करने के बाद एलएलबी की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद चले गए। बाद में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी और फिर नौकरी के चलते पेंटिंग का शौक कैनवास पर खुलकर नहीं उतर पाया। 2013 में आयकर आयुक्त पद से रिटायर्ड हुए डॉ. अग्रवाल अपने बचपन के शौक को अब पूरा करने में लगे हैं। वर्तमान में इनके पास सौ से अधिक पेंटिंग बनी हैं। कई पेंटिंग दूसरों को भेंट कर चुके हैं। डॉ. अग्रवाल की परिकल्पना पर बरेली रोड स्थित लटूरिया आश्रम में आकर्षक हनुमान झांकी तैयार की गई है।
पेंसिल, रबर का करते हैं प्रयोग
डॉ. अग्रवाल पेंसिल व रबर की मदद से स्केच तैयार करते हैं। उन्होंने पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, महात्मा गांधी, डॉ. अब्दुल कलाम, सरदार पटेल, डॉ. राधाकृष्णन, आइंस्टीन, बिस्मिल्ला खां, जीबी पंत समेत कई महापुरुषों के अलावा नीम करौली महाराज, लटुरिया बाबा, महादेव गिरि जैसे प्रसिद्ध संतों के रेखाचित्र व मार्बल की मूर्तियां बताई हैं।
लाल बहादुर शास्त्री की बनाई पहली पेंटिंग

रामलीला मोहल्ले में डा. अग्रवाल का पुस्तैनी घर था। नजदीक के केमू स्टेशन के पास लाल बहादुर शास्त्री के चाचा सदगुरु शरण श्रीवास्तव रहते थे। वह एमबी इंटर कॉलेज में प्रवक्ता थे। 1968 में सदगुरु ने अग्रवाल की सुंदर पेंटिंग देखकर उनसे बाल बहादुर शास्त्री का चित्र बनाने को कहा। यहां से पेंटिंग का शौक जुनून में परिवर्तित हो गया।
कई काव्य संग्रह का प्रकाशन
साहित्य के प्रति रुचि के चलते अग्रवाल ने 1995 में मॉरिशस के ङ्क्षहदी साहित्य में शोध किया। चितवन, आकाश अपना-अपना काव्य संग्रह प्रकाशित हुए हैं। इसके अलावा कई पत्रिकाओं का संपादन, जीवन लेखन कर चुके हैं।