Thursday, 28 June 2018

गांव में लगाया इको फ्रेंडली प्लांट, हिमांशु के प्रयास से खुलेगी रिवर्स माइग्रेशन की राह


हिमांशु पंत

गणेश पांडे, हल्द्वानी : रोजगार की तलाश में अपनी माटी छोडऩे वाले युवाओं के लिए सीमांत पिथौरागढ़ जिले के 33 वर्षीय हिमांशु पंत ने मिसाल कायम की है। बेरीनाग तहसील के बजेत (कालाशिला) गांव निवासी हिमांशु ने रोजगार की तलाश में शहरों की खाक छानने के बजाय अपने गांव में इंको फ्रेंडली बैग तैयार करने का प्लांट लगाया है। हिमांशु ने अपने प्लांट को ग्रीन हिमालय इको फ्रेंडली बैग नाम किया है। स्थापना के पांच माह में ही यह प्लांट आसपास के गांवों के आठ युवाओं को रोजगार उपलब्ध करा रहा है। हिमांशु को उम्मीद है अगले छह माह में वह 25 से 30 युवाओं को अपने प्लांट से जोड़ चुके होंगे। हिमांशु की पहल ने रोजीरोटी के खातिर शहर पलायन कर गए युवाओं को रिवर्स माइग्रेशन की उम्मीद भी जगाई है।


ऐसे आया आइडिया
बीएड और अकाउंट की पढ़ाई करने वाले हिमांशु दस साल तक एक शहर से दूसरे शहर भटकते रहे। कभी टीचिंग की तो कभी सीए के साथ काम किया। फैक्ट्री में भी हाथ आजमाया। हिमांशु बताते हैं पांच साल पहले से हल्द्वानी में एलआइसी के मार्केटिंग विभाग में काम करता था। विचार आया कि दूसरे की योजनाओं का प्रचार करने के बजाय अपना काम किया जाए। एक दोस्त ने इको फ्रेंडली बैग तैयार करने के प्लांट का प्रोजेक्ट दिखाया तो इस पर काम करने का मन बना लिया।

परिवार ने दिया हौसला
हिमांशु बताते हैं प्लांट लगाने से पहले मन में सवाल था कि काम चलेगा कि नहीं। पिता और छोटे भाइयों ने प्रोत्साहित किया। खादी ग्रामोद्योग बोर्ड से प्रधानमंत्री स्वरोजगार योजना के तहत आवेदन करने पर 25 लाख का लोन स्वीकृत हो गया। करीब इतनी ही राशि पिता नारायण पंत के (अस्पताल से सुपरवाइजर पद से) रिटायर्ड होने पर मिली रकम से मिलाकर जनवरी में प्लांट व प्रिंटिंग मशीन लगा लिया। हिमांशु का एक भाई सीए के साथ काम करता है, दूसरा एयरफोर्स में कार्यरत है।
बेरीनाग स्थित प्लांट में इको फ्रेंडली बैग तैयार करते युवा।
 

हल्द्वानी तक से आ रही डिमांड
पांच माह पहले महज दस दुकानों से शुरू हुआ काम आज शहरों तक पहुंच गया है। हिमांशु बताते है पहले बेरीनाग बाजार से ही डिमांड आती थी। अब पिथौरागढ़, बागेश्वर, गरुड़, अल्मोड़ा, चंपावत के साथ हल्द्वानी से भी बैग की डिमांड आ रही है। प्लांट में डी-कट, यू-कट बैग के साथ शॉपिंग में प्रयोग होने वाले लूप (फीते) वाले बैग भी तैयार होते हैं।

छह से 15 हजार देते हैं वेतन
प्लांट में काम करने वाले युवाओं को छह हजार से 16 हजार रुपये मासिक वेतन दिया जाता है। आपरेटर को छोड़ शेष आठ युवक स्थानीय हैं। कम वेतन वाले युवाओं से पार्ट टाइम काम किया जाता है।

Saturday, 9 June 2018

पप्पू कार्की : मुश्किलों को हराया, खुद जिंदगी से हार गए

:::स्मृति शेष:::

 गणेश पांडे, हल्द्वानी : मोर्चरी के बाहर पोस्टमार्टम के लिए लाए जाने वाले के परिजन, पुलिस वाले और पत्रकार ही दिखाई देते हैं। मगर शनिवार को मोर्चरी के बाहर नजारा दूसरा था। भीड़ में तमाम लोग ऐसे थे, लोक गायक पप्पू कार्की जिनके न तो रिश्तेदार थे और न पारिवारिक संबंधी। कई लोग अपने पसंदीदा कलाकार की अंतिम झलक पाने उमड़ आए थे। लोगों के दिलों में राज करने का ये मुकाम कार्की को लंबे संघर्ष के बाद हासिल हुआ था।

वर्ष 1998 में महज 14 वर्ष की आयु में पप्पू कार्की ने पहला गीत रिकॉर्ड कराया। मगर पहचान 2010 में आई 'झम्म लागछी' एलबम के 'डीडीहाट की झमना छोरी..' गीत से मिली। 12 साल के संघर्ष में पप्पूदा ने दिल्ली समेत कई महानगरों में हाथ-पांव मारे। 2003 से 2006 तक दिल्ली में पेट्रोल पंप, प्रिंटिंग प्रेस और बैंक में चपरासी तक की नौकरी करनी पड़ी। इसके बाद रुद्रपुर का रुख किया और दो साल डाबर कपंनी में ठेकेदारी प्रथा में काम किया। पिछले दिनों अपने स्टूडियो में मुलाकात के दौरान पप्पूदा ने बताया था कि दर-दर भटकाव से परेशान होकर उन्होंने गांव लौटने का मन बना लिया था। इसी दौरान लोक गायक प्रह्लाद मेहरा व चांदनी इंटरप्राइजेज के नरेंद्र टोलिया के साथ मिलकर 'झम्म लागछी' एलबम की, इससे बाद पप्पू कार्की की जमीन तैयार होती चली गई। हालिया 'तेरी रंग्याली पिछौड़ी' वीडियो गीत एक मिलियन से ज्यादा लोग देख चुके हैं।
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पंचेश्वर बांध पर लाना चाहते थे गीत
लोक गायक पप्पू कार्की के करीबी रहे लोक गायक संदीप आर्य ने बताया कि पप्पूदा ने पंश्चेश्वर बांध पर लोक गीत रचा था। 'न छोडू ईजा की माटी, न छोडू आपणी थाती' यानी अपनी मातृभूमि को नहीं छोड़ंगे और न अपनी जड़ों को छोड़ेंगे। सही समय आने पर वह इसे लोगों के बीच लाने की सोच रहे थे।
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ये सपने भी रह गए अधूरे
नीलम कंपनी के साथ कार्की तीन गीत, 'सुनै की थाली मा', 'रिमा-झिमा पानी' और 'ओ हिमा ह्यू पड़ो हिमाला' की रिकॉर्डिंग के लिए दिल्ली जाने वाले थे। इसके लिए 11 से 13 जून की तिथि तय थी। संदीप ने बताया उन्हें 10 जून की रात निकलना था। इस कारण वह रात ही गौनियारों से लौटने की बात कह रहे थे। छित्कू हिवाल ग्रुप के देवू पांगती के साथ मिलकर कुमाऊंनी रामलीला की रिकॉर्डिंग में जुटे थे। यह काम भी बीच में रुक गया है।
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खुद भटकता रहे, दूसरों के लिए खोला स्टूडियो
पप्पूदा ने एक बार बताया कि शुरुआत के दिनों में वह स्टेज पर प्रस्तुति देने लगे थे। कई म्यूजिक कंपनी वाले उनकी गायकी को सराहते, लेकिन जब उनके स्टूडियो गए तो टहलाया जाता था। एक साल पहले दवुवाढूंगा में पीके इंटरप्राइजेज नाम से रिकॉर्डिंग स्टूडियो खोला। कई प्रशिक्षु गायकों ने खुद को यहां तरासा।
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कुछ चर्चित लोकगीतऐ जा रे चैत बैशाख मेरो मुनस्यारा
बिर्थी कोला पानी बग्यो सारारा..
डीडीहाट की झमना छोरी
मधुली.. रूपै की रसिया
पहाणो ठंडो पांणी
तेरी रंगीली पिछौड़ी
छम छम बाजलि हो

Saturday, 2 June 2018

ऐसी शिव भक्ति पहले नहीं देखी होगी. मानसरोवर यात्रा पर तैयार की साढ़े तीन घंटे की डॉक्यूमेंट्री

ऐसी शिव भक्ति पहले नहीं देखी होगी. कैलास मानसरोवर यात्रा पर साढ़े तीन घंटे की डॉक्यूमेंट्री तैयार की. भक्तों को मुफ्त बांटते हैं डीवीडी.. हैदराबाद निवासी और मुंबई में रह रहे रामदास बोयापल्ली से
गणेश पांडे की बातचीत पर आधारित विशेष खबर..



रामदास बोयापल्ली
देवाधिदेव महादेव के आपने अनगिनत भक्त देखे होंगे। एक भक्त ऐसे भी हैं, जिन्होंने पूरे कैलास मानसरोवर यात्रा की डाक्यूमेट्री तैयार की है। इतना ही नहीं, डाक्यूमेंट्री की डीवीडी बनाकर शिव भक्तों को मुफ्त बांट रहे हैं। यह वीडियो कैलास मानसरोवर जाने वालों को गाइड भी कर रही है।
हैदराबाद निवासी 45 वर्षीय रामदास बोयापल्ली मुंबई में इलेक्ट्रानिक्स सामान का व्यापार करते हैं। बोयापल्ली ने उत्तराखंड के हल्द्वानी, धारचूला से लिपुलेख दर्रा होते हुए लगातार तीन बार कैलास मानसरोवर की यात्रा की। 2014 में पहली बार यात्रा पर गए थे। बोयापल्ली ने दिल्ली से कैलास पर्वत के दर्शन, मानसरोवर की परिक्रमा से लेकर वापस दिल्ली तक की पूरी यात्रा की वीडियोग्राफी की है। साढ़े तीन घंटे की वीडियो फिल्म में बस के सफर के साथ धारचूला, कालामुनी, गुंजी, तकलाकोट के दुर्गम रास्ते, प्राकृतिक सौंदर्य के साथ पल-पल बदलते मौसम को कवर किया है। बैकग्राउंड साउंड के तौर पर शिव स्त्रोत, शिव पंचाक्षर, रुद्राष्टक स्त्रोत, शिव तांडव स्त्रोत आदि प्रयोग किया गया है।


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हाई क्वालिटी कैमरा का प्रयोग
वीडियो कैमरा को लेकर आरडी बोयापल्ली को बड़ा जुनून रहा है। उनके पास विश्व की एडवांस तकनीक के 360 डिग्री में वीडियो शूट करने वाले वाटर प्रूफ, हाईरोल, थ्रीडी तकनीक कैमरा हैं। जो बड़े प्रोडेक्टशन हाउस में काम आते हैं। बोयापल्ली चार कैमरा को सिर, थ्रीडी चश्मा, हैंड कैमरा के रूप में एक साथ चलाते हैं। उच्च तकनीक के चलते वीडियो में संबंधित स्थान का तापमान, ट्रेक का स्थान, समुद्र सतह से ऊंचाई के साथ व्यक्ति की दिल की धड़कन भी पता चलती रहती है।

मानसरोवर यात्रा के दौरान बोयापल्ली का क्लिक फोटो

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कैलास यात्रियों को कर रही गाइड
मोबाइल पर हुई बातचीत में आरडी बोयापल्ली ने बताया कि अब तक 200 से अधिक डीवीडी तैयार कर बांट चुके हैं। इसमें सबसे अधिक वो लोग हैं जो 2015 और 2016 में बैच में उनके साथ यात्रा कर चुके हैं। फेसबुक, यूट्यूब पर वीडियो यात्रियों को गाइड करने के काम आ रही है।

रामदास बोयापल्ली

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सोशल मीडिया पर किया अपलोड
वर्ष 2016 की 22 दिन की यात्रा की वीडियो को एडिटिंग करने में छह माह का समय लगा। बोयापल्ली ने अपनी फेसबुक टाइमलाइन में वीडियो को पांच से सात मिनट का काटकर अपलोड किया है। कानपुर निवासी कैलाशी बीना भाटिया के बनाए फेसबुक ग्रुप कैलास मानसरोवर यात्रा लिपुलेख जत्था 2 में वीडियो शेयर की गई हैं। यूट्यूब पर रामदास बोयापल्ली सर्च कर वीडियो देखी जा सकती हैं।