गणेश पांडे : मन में इच्छाशक्ति हो तो कोई भी काम मुश्किल नहीं। उत्तराखंड के ऊधमसिंह नगर जिले की थारू जनजाति की महिलाओं ने इसी कहावत को चरितार्थ करते हुए बेरोजगार युवाओं के लिए मिसाल कायम की है। यहां की महिलाओं के बनाए फूलदान, श्रृंगार दान, टोकरी जैसे हैंडी क्राफ्ट के उत्पाद मलेशिया में बिक रहे हैं। दिलचस्प बात ये है कि मलेशिया निर्यात किए जा रहे सभी उत्पाद घास के बने हैं।
![]() |
कुश घास के बने हैंडी क्राफ्ट के उत्पाद दिखाती थारू जनजाति की युवतियां। |
ऊधमसिंह नगर जिले के सितारगंज और खटीमा ब्लॉक में निवास करने वाली थारू जनजाति की महिलाएं परंपरागत रूप से टोकरी निर्माण का काम करती रही हैं। 2002 में स्वर्ण जयंती स्वरोजगार योजना के तहत महिलाओं को समूहों के रूप में संगठित किया गया। दो साल पहले समूहों को राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत गोद लेकर बाजार उपलब्ध कराने का काम शुरू हुआ। सितारगंज ब्लॉक के नकुलिया गांव के लक्ष्मी व दुर्गा स्वयं सहायता समूह की 20 महिलाएं हैंडी क्राफ्ट बना रही हैं।
फूलदान के साथ युवती। |
फूलदान। |
यह उत्पाद हो रहे निर्यात
कुश घास से विभिन्न डिजाइन के फूलदान, फल की टोकरी, मेकअप बॉक्स, फ्लावर पॉट, श्रृंगार बॉक्स आदि मलेशिया जा रहा है। भारत में 50 रुपये से 300 रुपये में बिक रहे ये उत्पाद मलेशिया के लिए 150 रुपये से 800 रुपये प्रति पीस की कीमत में बिक रहे हैं।
फूलों की टोकरी। |
दुर्गा स्वयं सहायता समूह की सदस्य बब्बी राणा बताती है कि टोकरी कुश घास और ङ्क्षरगाल की तैयार होती है। कुश घास के बने उत्पाद अधिक साफ्ट, कलर फुल और आकर्षण होते हैं, इसलिए इनकी मांग अधिक रहती है। कुश घास नदियों के आसपास अधिक पाई जाती है और बरसात के दिनों में महिलाएं जंगल जाकर इसे काट लेती हैं। बाद में धूप में सूखाने के बाद जरूरत के अनुरूप सामग्री बुने जाते हैं।
क्या है कुश घास
कुश एक प्रकार का तृण है। जिसका वैज्ञानिक नाम एरग्रास्टिस साइनोसोरिड्स है। कुश की पत्तियां नुकीली, तीखी व कड़ी होती हैं। हैंडी काफ्ट के साथ इसकी चटाई भी बनती है। कुश पानी में एकाएक खराब नहीं होता। कुश का धार्मिक महत्व भी है।