Tuesday, 24 September 2019

रामनगर की मीनाक्षी ने ऐपण विधा को दिया नया आयाम

पूजा थाल के साथ मीनाक्षी खाती।

उत्तराखंड की अद्भुत लोक कला ऐपण को नया आयाम देने वाली कुमाऊं की ऐपण गर्ल मीनाक्षी खाती के हाथों का हुनर पूरा देश देखेगा। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के जन्म शताब्दी पर पर्यटन मंत्रालय की ओर से 2 से 6 अक्टूबर तक दिल्ली में होने वाले राष्ट्रीय पर्यटन पर्व में मीनाक्षी की हाथ से निर्मित ऐपण की प्रदर्शनी लगेगी। राष्ट्रीय फलक के आयोजन के लिए मीनाक्षी नई परंपरा के ऐपण तैयार करने में जुटी हैं। नैनीताल जिले के रामनगर की रहने वाली मीनाक्षी बीएससी अंतिम वर्ष की छात्रा हैं। ऐपण विधा को नया आयाम देने के लिए सोशल मीडिया पर चर्चित हुई मीनाक्षी को ऐपण गर्ल नाम दिया जा रहा है। मीनाक्षी ने बताया कि पर्यटन पर्व के लिए उन्होंने पहाड़ कॉलिंग थीम पर विशेष ऐपण तैयार किए हैं।  


ऐपण से सजा चाय कप।

इसलिए आईं चर्चा में 
 ऐपण को मूलरूप से गेरू (लाल मिट्टी) व बिस्वार (पीसे चावल में पानी मिलाकर तैयार लेप) से तैयार किया जाता है। मांगलिक कार्यों में ऐपण से घरों व मंडप को सजाने की परंपरा है। बाद में रेडीमेड स्टीकर ने ऐपण का रूप ले लिया। मीनाक्षी ने नेम प्लेट, चाय का कप, चाबी छल्ला, पूजा थाल, फ्लावर पॉट, पैन स्टैंड आदि में ऐपण को उताकर नया लुक दिया है। इससे स्वरोजगार की संभावना को भी बल मिला है।


ऐपण से दिया छल्ले का आकर्षक रूप।
इस तरह मिला आइडिया 
मीनाक्षी को दादी कमला खाती व मां उमा खाती से ऐपण कला विरासत में मिली। बचपन में दोनों को ऐपण बनाते देखने वाली मीनाक्षी को ऐपण को नए लुक में सामने लाने का विचार आया। फेसबुक, स्ट्राग्राम पर खूबसूरत फोटो शेयर करने से लोगों की पसंद बनती चली गईं।

दिल्ली, लखनऊ से आ रही डिमांड
सोशल मीडिया से प्रसिद्धि पाने वाली मीनाक्षी को दिल्ली, नोएडा, फरीदाबाद, लखनऊ जैसे शहरों से ऐपण युक्त नेम प्लेट, कप, पूजा थाल की डिमांड आ रही है। चमोली के ट्रेकिंग ग्रुप चेस हिमालया ने मीनाक्षी से 60 कप की डिमांड भेजी है। विदेशी ट्रेकर उत्तराखंड की याद के रूप में इसे अपने साथ लेकर आएंगे।

पहाड़ बुलाते हैं, कभी आइये।
नई पीढ़ी को बना रहीं हुनरमंद
मीनाक्षी का हुनर खुद तक सीमित नहीं है। समय मिलने पर वह आसपास के स्कूलों में जाकर कक्षा 9 से 12वीं के बच्चों को ऐपण का हुनर सिखाती हैं। मीनाक्षी कहती हैं नई पीढ़ी में पुरातन परंपरा का बीज बोना जरूरी है। इसके लिए किसी को तो पहल करनी होगी। फिर यह हुनर स्वरोजगार कर जरिया बने तो कहना ही क्या।